दक्षिण एशिया बन रहा है भूस्खलन का गढ़
गुरुवार, 19 जुलाई, 2012 को 00:40 IST तक के समाचार
दक्षिण एशिया के ज्यादातर देशों
में हाल के वर्षों में भूस्खलन बढ़ते जा रहे हैं और वैज्ञानिक इसकी वजह
वर्षा की प्रवृत्ति में अत्यधिक बदलाव, भूकंप के जोखिम और अनियंत्रित
मानवीय गतिविधियों को मानते हैं.
अधिकारियों का कहना है कि भूस्खलन से वजह से बड़ी
संख्या में लोग मारे गए हैं और बेघर हुए हैं. भूस्खलन की ये प्रवृत्ति
बढ़ती जा रही है.नई दिल्ली में सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र से जुड़ी हुई भूगर्भीय त्रासदी विशेषज्ञ मृगंका घटक का कहना है, “हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हुई है. ये वृद्धि खास कर भारत के उत्तरी हिस्सों, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में देखने को मिल रही है.”
उनका कहना है, “मुख्य तौर पर सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका हिंदु-कुश-हिमालय है जहां भूगर्भीय परिस्थितियां बदल रही हैं.”
बदले बारिश के अंदाज
इस केंद्र के अनुसार 2009 में दुनिया भर में हुए भूस्खलनों में 60 प्रतिशत भूस्खलन दक्षिण एशिया में हुए हैं जहां इस प्राकृतिक आपदा के कारण 280 लोग मारे गए. 2010 में भी तकरीबन इस तरह की स्थिति रही."अचानक भारी मात्रा में बारिश होने की वजह से पर्वतीय ढलानों से जमीन का जुड़ाव कम होता है और इसकी वजह से ज्यादा भूस्खलन होते हैं और उनकी वजह से होने वाली मौतें भी बढ़ रही हैं."
अशोक पचौरी, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन
वो कहते हैं, “अचानक भारी मात्रा में बारिश होने की वजह से पर्वतीय ढलानों से जमीन का जुड़ाव कम होता है और इसकी वजह से ज्यादा भूस्खलन होते हैं और उनकी वजह से होने वाली मौतें भी बढ़ रही हैं.”
पाकिस्तान के भूगर्भीय सर्वे के महानिदेशक इमरान खान भी इस बात से सहमति जताते हैं. साथ ही वो भूकंप के जोखिम को भी इसके लिए जिम्मेदार बताते हैं.
वो कहते हैं, “हिंदु-कुश-हिमालय दक्षिण एशिया का ऐसा इलाका है जो बहुत सारे भूगर्भीय बदलावों से गुजर रहा है. इसकी वजह धरातल के नीचे बढ़ने वाले दबाव भी हैं.”
'जलवायु परिवर्तन से निपटना होगा'
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए पर्वतीय ढलानों का अध्ययन करना होगा.
पाकिस्तानी भूगर्भीय सर्वे के खान कहते हैं, “हमने अटाबाद में एक ऐसा अध्ययन किया था और भूस्खलन होने से चार महीने पहले ही उसके बारे में चेतावनी दे दी थी. फिर सरकार ने एक हजार लोगों को जबरदस्ती उस इलाके से हटाया और बाद में वहां एक बड़ा भूस्खलन हुआ.”
लेकिन दक्षिण एशिया में बहुत सारे पहाड़ी ढलान हैं और बढ़ती आबादी के कारण इंसानी बस्तियों का दायरा लगातार बढ़ रहा है.
ऐसे में नेपाल पर अध्ययन करने वाले ब्रिटेन के डरहम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड पेटली कहते हैं कि इस खतरे को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका जलवायु परिवर्तन से निपटना होगा.
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