ऐलियंस हमारी दिलचस्पी का सबब रहे हैं। इनसे जुड़ा फिक्शन , फिल्म और हकीकत के किस्से हम आए दिन पढ़ते - देखते रहते हैं। ऐलियंस के होने - न - होने के बीच के दावों और सचाइयों का आकलन कर रहे हैं मुकुल व्यास :
पिछले दिनों पेरू के एक शहर में एक मानव खोपड़ी मिली , जिसका आकार सामान्य खोपड़ी से बहुत बड़ा था। खोपड़ी में आंखों की जगह भी बहुत बड़ी थी। कुछ लोगों ने फौरन यह नतीजा निकाल लिया कि यह खोपड़ी जरूर किसी ऐलियन यानी दूसरे प्राणी की है। रूस और स्पेन के तीन रिसर्चरों ने खोपड़ी देखने के बाद कहा कि यह मनुष्य की खोपड़ी नहीं है। यह किसी ऐलियन की ही खोपड़ी हो सकती है। खोपड़ी का सच इसके डीएनए विश्लेषण के बाद ही उजागर हो पाएगा।
होने के दावे
अभी कुछ अरसा पहले ही एक रूसी महिला ने एक ऐलियन का शव अपने फ्रिज में दो साल तक छिपा कर रखने का दावा किया था। उस महिला का यह भी कहना था कि उसे यह शव अपने फार्म हाउस के पास किसी उड़नतश्तरी के हादसे के बाद मिला था। महिला के मुताबिक मृत ऐलियन 2 फुट लंबा था। उसका सिर बहुत बड़ा था और उसकी आंखें भी बड़ी - बड़ी और उभरी हुई थीं। देखने में वह कहीं मनुष्य और कहीं मछली से मिलता था। साइंस फिक्शन फिल्मों के ऐलियन भी हमें कुछ इसी तरह के दिखाई देते हैं। रूसी महिला ने यह दावा भी किया कि रूसी साइंस अकैडमी के करेलियन रिसर्च सेंटर के लोग कुछ दिन पहले ही उसके घर से जांच के लिए यह शव ले गए।
ऐलियंस को लेकर रूस में और भी घटनाएं हुई हैं। अगस्त 2011 में साइबेरिया के इर्कुत्स्क क्षेत्र में ली गई एक फिल्म फुटेज में किसी दूरवर्ती मैदान में उड़नतश्तरी जैसी कोई चमकीली चीज दिखाई देती है। इस धुंधली फिल्म में यान के इर्द - गिर्द पांच ऐलियंस को भी बर्फ पर चहलकदमी करते हुए दिखाया गया है। यह फुटेज साफ नहीं है , लेकिन ऐलियंस में यकीन रखने वालों के लिए यह एक अच्छा मसाला है।
ऐलियंस को लेकर सबसे चर्चित घटना जून - जुलाई 1947 में अमेरिका में न्यू मेक्सिको के रोजवेल में हुई थी , जब वहां एक कथित उड़नतश्तरी दुर्घटनाग्रस्त हुई और इस यान पर सवार ' ऐलियन ' हिरासत में ले लिए गए। दुर्घटना में मरे ऐलियन के शव के पोस्टमॉर्टम से संबंधित एक धुंधली फिल्म बहुत चर्चा में भी रही।
यूएफओ का फंडा
आज रोजवेल ( अमेरिकी शहर ) यूएफओ ( अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट ) का पर्याय बन चुका है। वहां एक म्युज़ियम भी है , जहां यूएफओ क्रैश के बारे में जानकारी दी जाती है और यूएफओ से जुड़े मसलों पर रिसर्च की जाती है। रोजवेल कांड के बाद दुनिया में यूएफओ देखे जाने की अनगिनत घटनाएं रिपोर्ट की गईं। कुछ लोगों ने ऐलियंस द्वारा किडनैप किए जाने की शिकायत की , जबकि पेंटागन और ब्रिटिश रक्षा विभाग ने अपनी ' एक्स फाइलों ' में यूएफओ को जिंदा रखा।
ऐलियंस के बारे में सबसे विवादास्पद बयान इस सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने दिया। 2010 में उन्होंने दुनिया को यह कहकर चौंका दिया कि ऐलियंस का अस्तित्व तो है , लेकिन उनके करीब जाने की कोशिश खतरनाक साबित हो सकती है। उनका यह भी कहना है कि ऐलियंस नए संसाधन जुटाने के लिए पृथ्वी पर हमला कर सकते हैं। हॉकिंग ने कहा, ' हमें यह देखना होगा कि हमारी पहुंच से बाहर ऐलियंस की जिंदगी कितनी विकसित है। मेरी कल्पना में वे बड़े जहाजों में रहते हैं और अपने ग्रह से रसद पाते हैं। ऐसे मजबूत और बंजारा ऐलियंस हर उस ग्रह पर अपना हक जमाना चाहेंगे , जहां तक उनकी पहुंच है। '
बिखरे हुए निशान
सितंबर 2011 में हजारों अमेरिकी नागरिकों ने ओबामा प्रशासन को पिटीशन देकर मांग की थी कि सरकार दूसरे ग्रहों के जीवों के बारे में अब तक छुपाए गए तथ्यों को उजागर करे और अमेरिकी जनता को यह बताए कि ऐलियंस और सरकार के बीच किस तरह के संपर्क हुए हैं। एक पिटिशन में कहा गया था कि 50 फीसदी से अधिक अमेरिकी जनता को दूसरे ग्रह के प्राणियों की मौजूदगी में यकीन है , जबकि 80 फीसदी लोग यह मानते हैं कि सरकार इस बारे में सच को छुपा रही है। अत : लोगों को सचाई जानने का हक है। ये पिटिशंस ' वी द पीपल ' प्रॉजेक्ट के तहत दायर की गई थीं। इसके तहत अमेरिकी नागरिक सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जानकारी पाने के लिए पिटिशन दायर कर सकते हैं। इन पिटिशंस के जवाब में वाइट हाउस ने पिछले दिनों एक बयान जारी कर कहा कि अमेरिकी सरकार के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि हमारे ग्रह से बाहर किसी जीवन का अस्तित्व है , न ही किसी दूसरे ग्रह के जीव ने मनुष्य जाति के किसी सदस्य से संपर्क किया है। इसके अलावा ऐसी कोई जानकारी नहीं है , जिसके आधार पर यह नतीजा निकाला जा सके कि जनता की आंखों से कोई सबूत छुपाया जा रहा है।
लेकिन ओबामा प्रशासन यह बात दावे के साथ कैसे कह सकता है कि दूसरे ग्रह पर जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है ? यह सवाल उन वैज्ञानिकों द्वारा पूछा जा रहा है , जो यह कह रहे हैं कि हमने अभी तक गहन अंतरिक्ष की अच्छी तरह से पड़ताल नहीं की है। हो सकता है कि हमारे सौरमंडल में ऐलियंस के ऐसे - ऐसे निशान बिखरे हुए हों , जिन पर अभी तक हमारी नजर नहीं पड़ी है। उनका यह भी कहना है कि सुदूर अंतरिक्ष के अन्वेषण के लिए नासा द्वारा छोड़े गए पायनियर और वोएजर यान इतने छोटे हैं कि दूसरे ग्रह के प्राणियों ने उनका नोटिस ही नहीं लिया हो।
अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चरों ने वाइट हाउस के बयान से असहमति जाहिर की है। रॉक एथिक्स इंस्टिट्यूट के जेकब हक - मिसरा और एनवायरनमेंटल सिस्टम्स इंस्टिट्यूट के रवि कुमार कोप्परापू के मुताबिक यह मुमकिन है कि रेसिंग नौका के आकार के दूसरे ग्रह के यान हमारे सौरमंडल के आसपास तैर रहे हों और उन पर हमारी नजर नहीं पड़ी हो। उन्होंने अपने रिसर्च पेपर में लिखा है कि अंतरिक्ष की गहनता और अब तक की हमारी सीमित खोजबीन को देखते हुए इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि दूसरे ग्रह का कोई भी अन्वेषक यान कभी हमारी नजर में ही नहीं आया हो। यह भी संभव है कि ऐलियंस के पहचान - चिह्न हमारे सौरमंडल में मौजूद हों। हमें इन चिह्नों के बारे में प्रमाण इसलिए नहीं मिला है क्योंकि हमने इन्हें खोजने की ठीक से कोशिश नहीं की है।
कल्पना और अंदाजे की बात
यह एक काल्पनिक सवाल है कि अगर कभी हमारी मुलाकात किसी ऐलियन या पारलौकिक प्राणी से हो गई तो उसका रंग - रूप और हुलिया कैसा होगा ? क्या वह साइंस फिक्शन फिल्मों में दिखाए गए बड़े - बड़े सिर और बड़ी - बड़ी आंखों वाले छोटे कद के प्राणियों जैसा होगा या झींगा मछली की शक्ल वाला कोई दैत्याकार जीव होगा ? दूसरे ग्रह के प्राणी कितनी तरह के हो सकते हैं और क्या - क्या शक्लें अख्तियार कर सकते हैं , इस बारे में हम कल्पना के घोड़े किसी भी दिशा में दौड़ा सकते हैं।
दूसरे ग्रह के वजूद के बारे में अभी तक कोई सबूत नहीं मिलने के बावजूद कुछ वैज्ञानिक खगोल विज्ञान और पृथ्वी के जीव विज्ञान को मिलाकर उनके बारे में अंदाजा लगाने को तैयार हैं। दूसरे ग्रह के जीवों से हमारी मुलाकात के बारे में मोटे तौर पर दो संभावनाएं व्यक्त की गई हैं। या तो पड़ोसी ग्रहों और चंद्रमाओं की यात्रा करते हुए हमारा सामना दूसरे ग्रह के जंतुओं से हो जाए या फिर हम दूरवर्ती सौरमंडलों में पृथ्वी जैसे ग्रहों पर रहने वाले प्राणियों से फोन पर बात करने में सफल हो जाएं। पारलौकिक प्राणी कैसे दिखाई देंगे , यह इस बात पर निर्भर है कि उनसे कहां और कैसे मुलाकात होती है।
अगर हमारा पहला संपर्क अपने ही सौरमंडल के दायरे में होता है तो कम - से - कम हम वहां की परिस्थितियों के बारे में अब तक की जानकारियों के आधार पर कुछ अनुमान लगा सकते हैं। कई स्थान पृथ्वी जैसी कार्बन बायोकेमिस्ट्री और पानी पर आधारित जीव - जंतुओं के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। हो सकता है , मंगल की सतह के नीचे की मिट्टी इतनी गरम हो कि वहां पृथ्वी के बैक्टीरिया - जीवाणु पनप सकें। यह भी मुमकिन है कि सौरमंडल के बाहरी चंद्रमाओं के समुद्रों में विशाल जंतु तैर रहे हों। इनमें बृहस्पति के चंद्रमा , यूरोपा का जिक्र खासतौर से किया जा सकता है। इस बात की पूरी संभावना है कि यूरोपा पर पसरी हुई बर्फ की चादर के नीचे पानी का गहरा समुद्र हिचकोले ले रहा हो।
कुछ अन्य खगोल जीवविज्ञानी ऐसे जीवन की संभावना तलाश रहे हैं , जो पानी पर आधारित नहीं है। हमारे सौरमंडल में ज्यादातर जगह या तो बहुत गरम हैं या बहुत ठंडी। इन जगहों पर तरल पानी का टिक पाना असंभव है। इन स्थानों पर ऐसे कई तरल पदार्थ हैं , जो जीव - रसायनों का आधार हो सकते हैं। हमारे सौर मंडल में कुछ स्थान ऐसे हैं , जहां सतही झीलें और समुद्र मौजूद हैं , लेकिन इनमें पानी नहीं है। शनि के चंद्रमा टाइटन पर मीथेन और इथेन की ठंडी झीलें पाई गई हैं। इन ठंडी झीलों का मतलब यह है कि वहां रासायनिक क्रियाएं बहुत धीमी गति से होती होंगी। अगर वहां कोई जीव पनप रहा है तो उसके विकास की गति बहुत धीमी होगी।
अगर दूसरे सौरमंडलों में किसी पारलौकिक सभ्यता का वास है तो वह हमसे संपर्क कैसे करेगी ? पृथ्वीवासियों से संपर्क करने के लिए वह रेडियो तरंगें या लेसर बीम भेजने और और ग्रहण करने में सक्षम होनी चाहिए या उनके पास ऐसा जरिया होना चाहिए , जो प्रकाश वर्षों की दूरी पार कर संदेश भेज सके या ग्रहण कर सके। अगर वे इसमें सचमुच सक्षम हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए कि वे बेहद उन्नत जीव हैं।
हालांकि जारी है खोज
ऐलियंस के बारे में तमाम तरह की अटकलों और कल्पनाओं के बावजूद असलियत यह है कि अभी हमारे हाथ कोई ठोस चीज हाथ नहीं लगी है। पारलौकिक सभ्यताओं की खोज के लिए ' सेटी ' ( सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस ) को गठित हुए 50 से ज्यादा साल हो चुके हैं। शुरू में हमें सौरमंडल से बाहर किसी ग्रह की जानकारी नहीं थी , लेकिन आज 700 से ज्यादा ग्रहों का पता चल चुका है। सौरमंडल से बाहर झांकने वाला नासा का केपलर टेलिस्कोप निश्चित रूप से इस संख्या में लगातार इजाफा कर रहा है। ऐसे कई ग्रह मिल रहे हैं , जहां की परिस्थितियां जीने लायक हो सकती हैं। नए ग्रहों की खोज के साथ यह आशा भी बंध रही है कि ज्यादा उन्नत टेक्नॉलजी से लैस होने के बाद हम एक न एक दिन ऐसा ग्रह खोज लेंगेे , जहां जीवन के चिह्न मौजूद हों।
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